
माहवारी टैक्स पाकिस्तान: रावलपिंडी की 25 साल की वकील महनूर उमर पाकिस्तान सरकार को कोर्ट में घसीट रही हैं। उनका कहना है कि सैनिटरी पैड्स जैसे प्रोडक्ट्स को एसेंशियल सामान मानकर टैक्स से छूट मिलनी चाहिए। पाकिस्तान में टैक्स और ड्यूटीज मिलाकर इनकी कीमत पर 40% तक का बोझ पड़ जाता है, जैसा कि यूनिसेफ की रिपोर्ट कहती है। ग्रामीण इलाकों में सिर्फ 16.2% महिलाएं ही पैड्स खरीद पाती हैं, क्योंकि ये महंगे पड़ते हैं। महनूर का केस ‘महनूर उमर बनाम पाकिस्तान फेडरेशन’ लाहौर हाई कोर्ट में पहुंचा है, जहां पहली सुनवाई हो चुकी है।
महनूर का कहना है कि उन्हें दुख इस बात का है कि पैड्स पर परफ्यूम और कॉस्मेटिक्स जैसे लग्जरी आइटम्स की तरह टैक्स क्यों लगाया जाता है, जबकि गाय के सीमेन, दूध और चीज जैसे चीजें टैक्स-फ्री हैं। वो कहती हैं, “ये दुख की बात है कि महिलाएं मिनिस्टर, लॉमेकर और पब्लिक रिप्रेजेंटेटिव के तौर पर काम कर रही हैं, फिर भी जेंडर को नजरअंदाज करने वाले कानून पास हो जाते हैं। चाहे ये गलती हो या जानबूझकर इस तरह के कानूनों को बदलना ही पड़ेगा।” एक औरत जिंदगी में 6-7 साल माहवारी करती है, और स्कूल जाने वाली लड़कियों या गरीब महिलाओं के लिए ये मुश्किल होता है। WHO और यूनिसेफ इसे हेल्थ राइट मानते हैं। महनूर चाहती हैं कि पैड्स सस्ते हों और समाज में पीरियड्स को लेकर चुप्पी टूटे। वो कहती हैं, “पीरियड्स पर बहुत दिनों से ताला लगा है, इसे टैबू और साइलेंट इश्यू बना दिया गया। प्रॉब्लम पीरियड्स में नहीं, बल्कि इसके बारे में चुप रहने में है।”
महनूर का कोर्ट केस: पहली सुनवाई और चुनौतियां25 साल की उम्र में लाहौर हाई कोर्ट के पेपर्स पर अपना नाम देखना डरावना था महनूर के लिए। लेकिन अब वो हेडलाइन बन चुकी हैं। पाकिस्तान की 109 मिलियन महिलाओं में से ज्यादातर को पैड्स खरीदने में दिक्कत होती है, क्योंकि टैक्स की वजह से कीमतें आसमान छूती हैं। यूनिसेफ के मुताबिक, ये टैक्स 40% तक बढ़ा देते हैं। एक स्टडी कहती है कि ग्रामीण इलाकों में सिर्फ 16.2% महिलाएं पैड्स यूज करती हैं। सरकार एसेंशियल गुड्स को टैक्स-फ्री रखती है – जैसे कैटल सीमेन, दूध, चीज – लेकिन पैड्स को नॉन-एसेंशियल मानकर लग्जरी टैक्स लगाती है।
पीरियड टैक्स के खिलाफ कानूनी जंग लड़ रही महनूर के समर्थन में महवारी जस्टिस नाम का युवाओं का यूथ-लेड ऑर्गनाइजेशन भी आ गया है। ये संगठन स्वास्थ्य शिक्षा पर जोर देता है और गरीब इलाकों में माहवारी उत्पादों का वितरण करता है। इसकी शुरुआत 2022 के भयानक बाढ़ के बाद शुरू हुई ये, जब अनुम खालिद और बुशरा महनूर ने देखा कि महिलाएं असुरक्षित चीजों का सहारा ले रही थीं। उन्होंने महनूर के केस के लिए पेटिशन लॉन्च की, जो अब 4,700 से ज्यादा सिग्नेचर्स जुटा चुकी है। बुशरा कहती हैं, “कई ऐसे केस अनसुने रह जाते हैं, इसलिए हम लोगों को मोबिलाइज कर रहे हैं ताकि पब्लिक प्रेशर बने।”
लीगल दलीलें: जेंडर डिस्क्रिमिनेशन का मुद्दामहनूर की दोस्त और वकील अहसान जहांगीर खान ने कोर्ट में इनिशियल आर्ग्यूमेंट्स दिए। वो कहते हैं, “मेंस्ट्रुअल प्रोडक्ट्स की ऊंची कीमत महिलाओं की आर्थिक और सोशल दिक्कतों को और बढ़ाती है, जो इंडायरेक्ट जेंडर डिस्क्रिमिनेशन है।” “अगर बायोलॉजिकल फंक्शन के लिए टैक्स लगे, तो ये महिलाओं की डिग्निटी छीनने जैसा है।”