बलूचों का गला घोंटने का नया कानून लाया जिन्ना का देश, बलूचिस्तान में अब फौज की चलेगी मनमानी!

VSK Telangana    09-Jun-2025
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बलूचिस्तान विधानसभा ने गत दिनों आतंवाद निरोधी (बलूचिस्तान संशोधन) अधिनियम 2025 पारित किया है। माना जा रहा है कि इस कानून के तहत जिन्ना के देश की फौज और सुरक्षा बलों को बलूचों पर और जुल्म ढाने की खुली छूट मिल जाएगी। कानून में प्रावधान है कि संदेह होने पर किसी भी बलूच को 90 दिन तक बिना किसी आरोप के हिरासत में रखा जा सकता है। बेशक, इस कानून ने मानवाधिकार संगठनों और बलूच कार्यकर्ताओं के बीच गंभीर चिंता पैदा कर दी है, क्योंकि इसे न्यायिक सुरक्षा उपायों को दरकिनार करने और बलूच नागरिकों के खिलाफ दमनकारी कार्रवाई को वैध बनाने के रूप में देखा जा रहा है।

इस कानून के अंतर्गत प्रमुख प्रावधानों की बात करें तो इसमें सुरक्षा बल बिना आरोप के संदेह के आधार पर किसी भी महिला या पुरुष को 90 दिन तक हिरासत में रख सकते हैं। इस दौरान उस पर दमन के क्या क्या हथकंडे अपनाए जाएंगे, यह कहना भी मुश्किल है। दूसरे, अब संयुक्त जांच दल हिरासत का आदेश जारी कर सकते हैं और संदिग्धों की वैचारिक पृष्ठभमि खंगाल सकते हैं। तीसरे, इस कानून के तहत संपत्ति की जब्ती, तलाशी और गिरफ्तारी के लिए कोई पूर्व न्यायिक अनुमति आवश्यक नहीं होगी। चौथे, किसी भी निगरानी पैनल में अब सैन्य अधिकारी भी शामिल हो सकेंगे। साफ है कि इससे सैन्य नियंत्रण बढ़ेगा।

 
 
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इस कानून को लेकर बलूच मानवाधिकार संगठनों और अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं में चिंता का माहौल व्याप्त है। उन्होंने इस कानून की कड़ी आलोचना की है। बलूच यकजहेती समिति (बीवाईसी) ने कहा है कि इस कानून के रास्ते पूरे बलूचिस्तान को एक वैध हिरासत क्षेत्र में बदल देने की तैयारी है। बीवाईसी के कार्यकर्ताओं का कहना है कि यह कानून बलूच नागरिकों के खिलाफ राज्य प्रायोजित दमन को औपचारिक रूप देता है। उन्होंने इसकी तुलना नाजी जर्मनी तथा आधुनिक शिनजियांग में इस्तेमाल किए गए दमन के तरीकों से की है।

बलूचिस्तान लंबे समय से बलूच आजादी की आवाजों और राज्य के दमनकारी उपायों के बीच संघर्षरत रहा है। बलूच कार्यकर्ताओं और नागरिकों के जबरन गायब होने की घटनाएं दशकों से घ​टती आ रही हैं। इस नए कानून से इन घटनाओं को वैधता मिल सकती है, जिससे बलूच समुदाय में भय और असुरक्षा की भावना बढ़ेगी।

बीवाईसी और अन्य मानवाधिकार संगठनों ने संयुक्त राष्ट्र और अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार संगठनों से इस मामले में हस्तक्षेप की मांग की है। वे इस कानून को पाकिस्तान के संविधान के अनुच्छेद 10 और अंतरराष्ट्रीय नागरिक एवं राजनीतिक अधिकारों की संधि का उल्लंघन मानते हैं। माना जा रहा है कि जिन्ना के देश के आतताई शासकों ने बलूचिस्तान विधानसभा के रास्ते इस कानून को पारित करवा कर दमन का एक नया अध्याय शुरू करने का मन बनाया है। यह कानून जहां एक ओर न्यायिक प्रक्रिया को कमजोर करता है वहीं दूसरी ओर उस क्षेत्र में सेना के शिकंजे को और कसने वाला है। मानवाधिकार संगठनों और बलूच कार्यकर्ताओं का मानना है कि यह कानून बलूच नागरिकों की जान सांसत में लाने का एक नया औजार बन सकता है।

 
 
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A Delhi based journalist with over 25 years of experience, have traveled length & breadth of the country and been on foreign assignments too. Areas of interest include Foreign Relations, Defense, Socio-Economic issues, Diaspora, Indian Social scenarios, besides reading and watching documentaries on travel, history, geopolitics, wildlife etc.